सामरिक राजनीति में रघुवंश बाबू क्यों प्रासंगिक हैं?

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रघुवंश बाबू की कल की चिट्ठी पढ़कर  दुःख हुआ, वो सिर्फ किसी एक पार्टी के नेता भर नहीं हैं। पार्टी लाइन के अलावा आज के युवाओं के लिए उनका व्यक्तित्व किसी बरगद की पेड़ से कम नहीं हैं। समाजवाद के सच्चे और मुख्य सिपाहियो में से एक रघुवंश बाबू को उम्र के इस पड़ाव में आकर अपनी पार्टी को छोड़ना और इसे सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को जानकारी देना बेहद दुर्भाग्य पूर्ण है। चार दशक से लालू यादव और रघुवंश बाबू एक साथ बैठकर राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियों का सामना करते आये हैं। ऐसे कई मौके आए जब लालू यादव को चारा घोटाला के मामले में जेल जाना पड़ा और  विरोधियों ने उनकी पार्टी को तोड़ने की कोशिश की। लेकिन वे हर बार नाकाम रहे तो उसके मुख्य कारणों  में से एक था रघुवंश बाबू की मौजूदगी तथा पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का रघुवंश बाबू के प्रति अद्भुत सम्मान।

2017 का एक वाक्या याद आता है, जब लालू यादव की पेशी सीबीआई की अदालत में थी और वह रांची गए हुए थे। तब अचानक सीबीआई की टीम ने राबड़ी आवास सहित कुल 12 ठिकानों पर रेलवे टेंडर संबंधित मामलों में छापे मारी की, जिसमें राबड़ी और उनके परिवार के सदस्यों से लगभग 12 घंटे तक लंबी पूछताछ भी चली। राबड़ी आवास के बाहर मीडिया और कार्यकर्ताओं का हुजूम लगा था। उस समय रघुवंश बाबू  पूरे दिन लालू परिवार के लिए चट्टान बनकर खड़े थे और लगातर मीडिया को अपने ठेठ और आक्रामक तेवर से संभाल रहे थे। साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं की भीड़ को भी संभाल रहे थे ताकि वे भावनाओ में आकर कोई गलत कदम उठाकर कानून को हाथ में न लें। इस प्रकार रघुवंश बाबू इस दिन लालू यादव के साथ आई इस बाधा में परिवार के लिए मुखिया बनकर लालू यादव का फ़र्ज़ निभा रहे थे और दूसरी तरफ पार्टी के मुखिया के रूप में भी मुस्तैद थे।

राजनीति से इतर लालू यादव और रघुवंश बाबू की दोस्ती एक मिसाल से कम नहीं है। पार्टी को दोनों ने मिलकर सिंचा है.. लालू यादव पर जब भी मुसीबतें आयीं तब उनके अच्छे अच्छे भरोसेमंद लोगो ने उन्हें धोखा दिया लेकिन रघुवंश बाबू एक अकेला व्यक्ति हैं  जो लालू जी के साथ खड़े रहे और विरोधियों के खिलाफ गरजते व उन्हें ललकारते रहे। रघुवंश बाबू का ये प्यार लालू यादव के लिए एकतरफा नहीं है। ये बात आप लालू जी के पत्र से भी समझ सकते है कि पारिवारिक मामलों में भी लालू यादव कभी भी रघुवंश बाबू  की राय लिए बिना फैसला नहीं लेते हैं। रघुवंश बाबू की अगर ईमानदारी की बात की जाए तो सांसद से लेकर कैबिनेट मंत्री तक रहे इस व्यक्ति के पास संपति के नाम पर अपने पैतृक गांव में एक साधारण सा घर है, कुछ बिघा जमीन , पटना में आवास के नाम पर एक छोटा सा घर और रास्ते नापने के लिए एक पुरानी स्कॉर्पियो। इससे स्पष्ट होता है कि रघुवंश बाबू की पृष्ठभूमि बिल्कुल ठेठ और सादगी भरा रहा है। ये जान कर ताजुब होगा कि यूपीए 1 में कैबिनेट मंत्री रहते हुए एक बार इनका ड्राइवर नहीं आया था तो ये ऑफिस के लिए बस से ही निकल गये। बस में सीट भरे होने के कारण खड़े ही जा रहे थे, तब किसी ने उन्हें पहचान लिया और बैठेने के लिए जगह दी। आज के दौर में उनके जैसा ईमानदार व्यक्तित्व दूर दूर तक नजर नहीं आता।

भारत सरकार की सबसे कामयाब योजनाओ में से एक मनरेगा को गांव गांव तक पहुंचने में रघुवंश बाबू का बड़ा योगदान रहा है, ये बहुत कम ही लोग जानते है। 2005-06 में बिहार में नीतीश की सरकार थी और केंद्र में यूपीए की जिसमे रघुवंश बाबू ग्रामीण विकाश मंत्रालय संभाल रहे थे लेकिन उन्होंने कभी भी नीतीश के साथ भेदभाव ना करते हुए भर भर के सड़कों के लिए फंड दिये।

इन सब पहलुओं में सबसे अच्छी बात जो रही वो ये कि रघुवंश बाबू के चिट्ठी के सामने आने के बाद फौरन ही लालू यादव ने भी एक चिट्ठी लिखी जो सच में भावुक करने वाली थी…चिट्ठी के आखिरी पंक्ति में लालू यादव लिखते है!

“आप कहीं नहीं जा रहे हैं! समझ लीजिए”।

ये एक पंक्ति ही इन दोनों की राजनीतिक धरोहरों के बीच की अटूट रिश्ते और प्यार को समझने के लिए काफी है। आज के सोशल मीडिया वाले दौर में ये दोनों चिट्ठियों शायद हमारी युवा पीढ़ी के लिए नई हो और शायद आखिरी भी!

आज की युवा पीढ़ी अपनी राजनीतिक धरोहरों को को बचाने में नाकाम दिख रही जो बेहद निराशाजनक है। आज पुरा देश जब एक अलग दौर से गुजर रहा है तब रघुवंश बाबू जैसे समाजवादी नेताओं की अहमियत और बढ़ जाती है। आज जरूरत थी कि रघुवंश बाबू जैसे लोगों  के मार्गदर्शन में एक जनआंदोलन खड़ा कर परिस्थितियों को बदलने का प्रयास हो जैसे कभी जेपी और लोहिया के नेतृत्व में हुआ था। लेकिन हम यहां असफल होते दिख रहे हैं। अंत में बस यही कहूंगा रघुवंश बाबू हम सब के लिए बहुत कीमती हैं, उनकी  बेहतरी के लिए दुआ कीजिए।