अंतरराष्ट्रीय मज़दूर (श्रमिक) दिवस हर साल 1 मई को मनाया जाता है। यह दिन उन सभी मज़दूरों को समर्पित है जो लोहे-पत्थर, कारखानों मे काम कर अपना रोजी रोटी चलाते हैं। इस दिन का महत्वपूर्ण इतिहास है जिसे हमें जरूर जानना चाहिए।
1 मई को अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस मनाने का मुख्य कारण 19वीं शताब्दी के अंत में उत्पन्न हुई मज़दूर आंदोलनों का था। उस समय कई देशों में श्रमिकों की स्थिति बहुत ही बुरी थी। वे बेहद कठिनाईयों और अन्याय का सामना कर रहे थे। उनके काम के बदले में मिलने वाला वेतन बहुत कम था और उनके अधिकारों की कोई भी सुरक्षा नहीं थी। इस परिस्थिति में उन्होंने मिलकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
1886 में अमेरिका के शहर शिकागो में बड़े स्तर पर मज़दूरों ने हड़ताल कर दी थी और उनकी मांग थी कि एक दिन में काम करने का समय सीमित किया जाए। उनकी मांगों को मान्यता मिलते ही, इस दिन को ‘हड़ताल दिवस’ के नाम से मनाया जाने लगा। इसके बाद, 1890 में दूसरी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में, इसे ‘अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया।
आज, यह दिन श्रमिकों के अधिकारों को मानने और समर्थन में लोगों को जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण मौका बन चुका है। इस दिन को विशेष रूप से उन लोगों के लिए मनाया जाता है जो कठिनाईयों के बावजूद मेहनत करते हैं। यह एक संदेश भी है कि हमें उनके साथ हैं और उनके अधिकारों की सम्मान करनी चाहिए।
बाकि दिन हम कुछ सोचे ना सोचे, कम से कम इस दिन पर हम सोच सकते हैं कि कैसे श्रमिकों ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया और कैसे उन्होंने समाज में अपनी मान्यता हासिल की। इसके बिना, हम समाज के सबसे मजबूत स्तंभ को अनदेखा कर रहें हैं। हालांकि आज भी मजदूरों के समस्या बरकार है और भारत जैसे बड़े देश बड़ा मजदूरों का तपका इन्फ़ारमल सैक्टर मे काम करते हैं, जहां उन्हे सीमित अधिकार है और वो काफी मुश्किल हालत मे काम करते हैं। उन्हे काम छिन जाने का खतरा हमेशा बना रहता है।
ऐसे मे अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस एक संदेश है कि हमें मजदूरों के अधिकारों की सम्मान करने और उन्हें मान्यता देने की ज़रूरत है। श्रमिकों के बिना हमारा समाज अधूरा है, इसलिए इस दिन को समझना और मनाना हमारा दायित्व है। साथ ही, उनकी सामाजिक सुरक्षा और अधिकार के लिए हम सबको संघर्षरत रहना चाहिए।